नपुंसकता-नामर्दी (Impotency)

नपुंसकता-नामर्दी 
(Impotency)


ईश्वर की इस बनायी हुई सृष्टि में दो ही जातियाँ हैं नर और मादा। ईश्वर ने इस सृष्टि में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों की रचना की है। मनुष्य इस सृष्टि की सर्वोत्तम खूबसूरत रचना है। इस सृष्टि में ईश्वर ने मनुष्य, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों की समस्त जातियों में नर और मादा की रचना की है। नर और मादा सूक्ष्म अति सूक्ष्म जीवाणुओं में भी होते हैं। नर और मादा मनुष्य में हो अथवा पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े या सूक्ष्म जीवाणुओं में, सभी जब आपस में मिलते हैं या मैथुन क्रिया करते हैं तब गर्भाधान होता है और नये प्राणी का जन्म होता है। इनमें से मनुष्य सहित कुछ प्राणियों की मादा मैथुन किया के पश्चात् एक निश्चित समय तक गर्भ धारण करती है और उसके पश्चात् बच्चे को जन्म देती है। कुछ प्राणियों में नर मादा से संयोग करता है और मार्दा अण्डे देती है तथा एक निश्चित समय पाकर अण्डों से बच्चे निकल आते हैं। ईश्वर की इस सृष्टि में कुछ प्राणियों को ईश्नर ने इस प्रकार का निर्मित किया है जिसमें नर और मादा दोनों अंग रहते हैं, ये प्राणी नर और मादा का संयुक्त रूप होते हैं। ईश्वर की अद्भुत लीला का यह एक हिस्सा है। ऐसे प्राणी खुद अपने आप से ही मैथुन करते हैं तथा खुद ही नई सृष्टि की रचना करते हैं। अधिकांश पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े यहाँ तक कि सूक्ष्म जीवों का भी प्रकृति ने मिलन तय कर रखा है अर्थात् ये एक विशेष मौसम में अथवा एक विशेष समय में गर्भाधान या अण्डे देने के पूर्व मिलते हैं और इस सृष्टि में नये शिशु को आने का अवसर देते हैं।

संसार में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसका मादा से मिलने का या मादा का नर से मिलने का कोई निर्धारित समय या मौसम नहीं है। यह कभी भी किसी भी समय मैथुन क्रिया कर सकते हैं। मनुष्य मादा से या मादा नर से दिन में कई बार मैथुन क्रिया के लिये मिल सकते हैं। यह मनुष्य नर और मादा की विशेषता है।

इस ग्रंथ की रचना का उद्देश्य नपुंसकता संबंधी सारगर्भित विषयगत जानकारी से पाठकों को अवगत कराना है। नपुंसकता और नामर्दी विषय के महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी से पूर्व स्त्री और पुरुषों के प्रजनन अंगों को समांना अति आवश्यक है। स्त्री और पुरुषों के प्रजनन अंगों को समझे बिना नपुंसकता को समझ पाना कठिन है। इसलिए इस ग्रंथ में सर्वप्रथम स्त्री और पुरुष के प्रजनन अंगों की विशिष्ट जानकारी प्रस्तुत की जा रही है। स्त्री और पुरुष के प्रजनन अंगों को समझने के उपरांत नपुंसकता को सहज समझा जा सकता है। स्त्री और पुरुषों के प्रजनन अंगों की जानकारी इस प्रकार नीचे उल्लेख की जा रही है।

प्रजनन अंग
(Sexual Organs)


नपुंसकता-नामदर्दी की विवेचना, परिभाषा, रोगजन्य नपुंसकता, संभोग क्रिया में मस्तिष्क की भूमिका, नपुंसकता के कारण तथा लक्षण, नपुंसकता के प्रकार तथा नपुंसकता की अवस्थाओं एवं चिकित्सा संबंधी ज्ञान प्राप्त करने के पूर्व स्त्री और पुरुषों के भीतरी तथा बाहरी प्रजनन अंगों की संरचना तथा उनकी क्रिया आदि को भली भांति समझना आवश्यक है। इसके बिना नपुंसकता को नहीं समझा जा सकता। संतान उत्पन्न करने तथा मैथुन क्रिया से उत्पन्न तृष्ति आनंद देने वाले स्त्री-पुरुष के प्रजनन अंग पाठकों की जानकारी के लिए नीचे सविस्तारै अलग अलग प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।

पुरुषों के प्रजनन अंग 
(Male Sexual Organs)


पुरुषों के प्रजनन अंगों को नीचे विस्तार पूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा है, पुरुषों के प्रजनन अंग बाहरी तथा भीतरी दो प्रकार के होते हैं। यहाँ बाहरी और भीतरी दोनों अंगों का वर्णन किया जा रहा है। पुरुषों के बाहरी तथा भीतरी प्रजनन अंग निम्नांकित हैं।

1. शिश्न अथवा लिंग (Penis)


2. वृषण तथा अण्डग्रंथि (Testicle) 2


3. पौरुष ग्रंथि या अष्टीला ग्रथि (Prostate Gland)


4. अण्डकोष (Serotum)


5. उपाण्ड या शुक प्रणाली (Epididymis)


6. शुक्रशाय (Seminal Vesicle)


7. शुक श्रावणी नलिका (Ejaculatory Duct)


8. मूत्र नलिका (Urethra)


9. शिश्नमूल ग्रंथियों (Coupers Glands)


10. वृषण रज्जू (Spermatic Cord)

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