पुरुषों के यौन रोग
(Venereal Diseases)
जो रोग 'बौन सम्पर्क' से फैलते हैं उन रोगों को 'यौन रोग' कहा जाता है। यौन रोगों को ही 'गुप्त रोग' कहा जाता है। यह रोग क्योंकि चुपके से फैलते और पुरुषों तथा स्त्रियों के गुप्तांगों को पीड़ित करते हैं इसलिये इनको गुप्त रोग के नाम से पुकारा जाता है। यौन रोगों की समस्या से पूरा विश्व परेशान है। जब पेनिसिलीन की खोज की गई थी तव तत्कालीन चिकित्सा वैज्ञानिकों ने विश्वास व्यक्त किया था कि अब समूचे विश्व से यौन रोगों को समूल नष्ट कर दिया जायेगा। उसके पश्चात् पेनिसिलीन को इतना अधिक प्रयोग किया गया कि यौन रोगों के जीवाणु 'पेनिसिलीन प्रतिरोधी हो गये और पेनिसिलीन जैसा महास्त्र भी विफल हो गया। 'सुज़ाक' के इसके जीवाणु इसके अधिक प्रतिरोधी हुए हैं।
यौन रोगों का संक्रमण उग्र तथा कम उग्र दो प्रकार का होता है। उग्रता का अर्थ जीवाणुओं के संक्रमण की शक्ति से है। जो रोगी कम उग्र जीवाणुओं के संक्रमण से प्रभावित होते हैं उनके शरीर में उतने अधिक उग्र लक्षण प्रकट नहीं होते इसलिये ऐसे रोगी खुद को इन रोगों से मुक्त समझ कर 'यौनाचार' करते रहते हैं और रोग की फैलाते रहते है। इसी •प्रकार ऐसे रोगी जिनकी चिकित्सा आधी-अधूरी की गई हो या स्वयं रोगी ने अपूर्ण चिकित्सा करवायी हो, ऐसे रोगियों के शरीर में भी लक्षणों की तीव्रता घट जाती है और वे खुद को स्वस्थ समझ बैठने की गलती कर बैठते हैं। अज्ञानतावश कुछ अनुभवहीन चिकित्सक भी लक्षण नष्ट हो जाने पर रोग नष्ट हो गया समझने की गलती कर बैठते हैं। लक्षण नष्ट होनें के पश्चात् भी संक्रमण नष्ट हो ही गया है ऐसा कदापि नहीं समझना चाहिये। गुप्त रोगों से पीड़ित स्त्री-पुरुष निश्चय ही 'व्यभिचारी' होते हैं इसलिये उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वे पुनः किसी से यौन सम्पर्क नहीं करेंगे। विशेप करके पुरुष निश्चित रूप से पुनः यौन रोगो से ग्रस्त स्त्रियों से सम्पर्क करेंगे। ऐसा भी हो सकता है कि वे किसी स्वस्य स्त्री से भी यौन सम्पर्क कर बैठें। लक्षण समाप्त हो जाने के उपरान्त भी जीवाणु पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होते और रोगी रोग को आगे दे देता है। इसलिये रोगी की चिकित्सा पूर्ण होना आवश्यक है। स्वयं रोगी को भी अपनी पूर्ण चिकित्सा के लिये सजग रहना अति आवश्यक। है। पूर्ण चिकित्सा कराने के पश्चात् भी रोगी पुनः गुप्त रोगों के कुये में छलांग लगाने चल पड़ता है। मैंने ऐसे कई रोगियों को देखा है जो रोगी अवस्था में कान पकड़कर हजार हजार कसमें खाते हैं कि अब भविष्य में वे कभी भी किसी व्यभिचारी स्त्री या पुरुष के साथ यौन सम्पर्क नहीं करेंगे परन्तु कुछ ही दिन या 4-6 माह के पश्चात् वे पुनः रोगी होकर लिये आ जाते हैं। इलाज के
यौन रोगों की रोकथाम के लिये केवल चिकित्सा विज्ञान की ही जिम्मेदारी नहीं है कि यह रात-दिन कठिन परिश्रम करके नई-नई औषधियों की खोज करता रहे। यौन रोगों के सम्पूर्ण खात्मे के लिये नैतिक एवं सामाजिक शक्तियों के संगठित होकर सक्रिय हो जाने की भी आवश्यकता है। हर गुप्त रोगी यह जानता है कि यह रोग खतरनाक जानलेवा होते हैं।
लेकिन फिर भी अपनी 'यौनक्षुधा' मिटाने के लिये वह वार-यार इस संकट को गले लगाने के लिये तैयार हो जाता है। एक युवा रोगी ने मुझसे कहा- "जब वह वेश्याओं के सम्पर्क में जाता है तब उसे कतई याद नहीं रहता कि वह जिन स्त्रियों के पास जाता है वे समी बीमार होती हैं।" एक अन्य रोगी ने लापरवाही से कंधे उचका कर कहा- "चिकित्सा अव काफी तरक्की कर चुकी है। अब ऐसा कोई रोग नहीं रहा जिसका इलाज सम्भव न हो। पेनिसिलीन का इंजेक्शन सब ठीक कर देता है फिर डर काहे का।"
जब तक युवा स्त्री-पुरुषों के मस्तिष्क में यह भावना रहेगी कि "पेनिसिलीन है अब डर काहे का" तब तक विश्व से यौन रोगों का सफाया नहीं किया जा सकता। एक रोगी ने निर्भयतापूर्वक कहा- "एक-दो इंजेक्शन लगाओ, सब ठीक हो जाता है। चिंता किस बात की।"
एक युवा लड़की अक्सर इलाज के लिये मेरे पास आया करती थी। वह अति सुन्दर युवती थी तथा कालेज में पढ़ रही थी। उसको जब मैंने यौन रोगों की गंभीरता का हवाला देकर इनसे बचने की हिदायत दी तो उसने कहा- "खर्च पूरे कहीं से होंगे। पिता अक्षम है. कोई काम-धंधा नहीं कर सकते। माँ की दमे की रोगी है। कोई भाई भी नहीं है जो घर का सहारा बन सकें। पढ़-लिखकर जब नौकरी करने लगूंगी तब यह सब छोड़ दूंगी।" लेकिन अफसोस, नौकरी लगने के पश्चात् भी उक्त युवती मेरे पास इलाज के लिये आती रही और नौकरी लगने के 2-3 वर्ष के पश्चात् उसी के एक दोस्त से खबर लगी कि उसने रेल के नीचे आकर अपनी जान दे दी। उस सुन्दर लड़की की मौत ने मुझे काफी दिनों तक गमगीन रखा।
छोटे नगरों या ग्राँवों की अपेक्षा बड़े शहरों में तो वेश्यावृत्ति के बड़े-बड़े मुहल्ले आबाद रहते हैं। जिस शहर में वेश्यावृत्ति के मुहल्ले बसे होते हैं उस शहर में यौन रोगियों की भरमार रहती है। हमारे देश के अधिकांश बड़े शहरों में बड़े-बड़े वेश्यावृत्ति के अड्डे मौजूद हैं जो खुलेआम चलते हैं। दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता तथा चेन्नई वेश्यावृत्ति के गढ़ हैं। दिल्ली का जी.बी. रोड तथा कलकत्ता का सोना गाछी सारे संसार में मशहूर है। बिजनेस-व्यापार अथवा घूमने-फिरने के इरादे से करोड़ों पर्यटक चारों महानगरों में प्रतिदिन आते-जाते रहते हैं। शौकीन मिजाज के लोग शहर में आते ही सबसे पहले इन अड्डों में आकर अपनी मनपसंद लड़की के साथ एक बार संभोग करने की इच्छा को रोक नहीं पाते। ऐसे व्यामिचारी पुरुष तब तक ऐसे अड्डों पर जाते रहते हैं जब तक वे रूग्ण नहीं हो जाते। रूग्ण होने के पश्चात् भी वे तभी तक रूक पाते हैं जब तक रोग के लक्षण लोप नहीं हो जाते।
दिल्ली के जी.बी. रोड अथवा महानगरों के अन्य अड्डों अथवा छोटे-बड़े शहरों के अड्डों पर 12 वर्ष की आयु से लेकर 30-35 वर्ष तक की लड़कियाँ वेश्यावृत्ति के धंधे में लिप्त पायी जाती हैं। इनमें अधिकांश लड़कियाँ 'दबाव' में आकर परपुरुषों के पहलू में अनिच्छापूर्वक सोती हैं। कई ऐसी भी हैं जो अपनी इच्छा से धंधा करती हैं। अधिकांश लड़कियाँ शादी का प्रलोभन देकर अथवा वलातू अपहरण करके इस पेशे में ढकेलं दी जाती - हैं। पुलिस वेश्यावृत्ति के क्षेत्र को 'रेड लाइट एरिया' नाम से संबोधित करती है। आज देश की तमाम प्रान्तीय राजधानियों, नगरों तथा उपनगरों में 'रेड लाइट एरिया' मौजूद है। कई शहरों में ती वेश्यावृत्ति के अड्डे सैकड़ों वर्षों से एक विशेष क्षेत्र में आबाद हैं। वेश्याओं को सरकार की ओर से नाचने और गाने का लाइसेंस मिलता है। लेकिन नाच और गायन की आड़ में शरीर का सौदा होता रहता है। यह सरकार भी जानती है और आम आदमी भी। ... इतिहासकार कहते हैं यौन रोग हमारे देश में कभी भी नहीं थे। यौन रोगों का आगमन विदेशियों के आगमन के साथ हमारे देश में हुआ है। कहते हैं यौन रोग सिकंदर एवं उसकी सेना के साथ हमारे देश में प्रविष्ट हुये थे। खुद सिंकदर भी यौन रोगों से पीड़ित था। सिकंदर एवं सिंकदर की सेना के सिपाहियों ने हमारे देश की स्त्रियों के साथ जबरन यौन संबंध स्थापित करके उन्हें भी यीन होगी बना दिया। इन यौन रोगों से ग्रस्त स्त्रियों के कारण हमारे देश के पुरुष भी यौन रोगी हो गये। यौन रोग आगे चलकर महामारी के रूप में फैलते चले गयेः। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में लगभग 10 करोड़ से भी अधिक यौन रोगी हैं।
यौन रोगों से पीड़ित कोई भी स्त्री या पुरुष किसी भी स्वस्थ स्त्री या पुरुष को यौन सम्पर्क से यौन रोग सहज दे देते हैं। यदि स्त्री यौन रोगी हो तो स्वस्थ पुरुष से संबंध कायम करती है तो उक्त स्वस्थ पुरुष यौन रोगी हो जाता है। यदि रोगी पुरुप स्वस्थ स्त्री से यौन संबंध बनाता है त्तव स्वस्व स्त्री यौन रोगों से पीड़ित हो जाती है। रोगी स्त्री या पुरुप जितने स्वस्थ स्त्री या पुरुषों से यौन संबंध कायम करते चले जायेंगे उतने ही स्वस्थ लोग यौन रोगी होते चले जाते हैं। हालाँकि हमारे देश में वेश्यावृत्ति को समूल नष्ट कर देने का बीड़ा कई समाजसेवी संस्थाओं या संगठनों ने उठा रखा है लेकिन फिर भी वर्षों के संघर्ष के बावजूद इसमें रत्ती भर भी सफलता नहीं मिल पाई है। रेड लाइट एरिया एक स्थान से उठ तो जाता है परन्तु चोरी-छिपे अथवा खुलेआम दूसरे इलाकों में प्रारम्भ हो जाता है। देश में वेश्यावृत्ति कानून भी कुछ इस प्रकार का है कि पुलिस प्रशासन इसकी रोकथाम में कोई विशेष योगदान नहीं दे पाता।
यौन रोगों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण वेश्याओं के स्वास्थ्य के प्रति सरकार का गैर-जिम्मेदाराना रवैया है। वेश्याओं के स्वास्थ्य की नियमित जाँच नहीं की जाती। वेश्याओं की चिकित्सकीय जाँच के लिये वेश्यालयों के नजदीक कहीं पर भी अस्पतालों की सुविधा
नहीं है, यदि है भी तो अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टर और कर्मचारीगण या तो अस्पतालों में आते नहीं या फिर अपने कर्त्तव्यों के प्रति लापरवाह और गैर-जिम्मेदार रवैया अपनाते रहते हैं। सरकार को वेश्याओं की चिकित्सकीय जाँच के लिये एक विशेष चिकित्सा दल की नियुक्ति करनी चाहिये जो समय-समय पर प्रति सप्ताह वेश्याओं को यौन रोगों के प्रति, सतर्क रहने का निर्देश देने के साथ-साथ यौन रोगों को उचित चिकित्सा भी करे। वेश्याओं को भी यौन रोगों से बचाव के सुझाव सुझाये जाने चाहियें। इसके अतिरिक्त वेश्याओं को नियमित जाँच के लिये भी उत्साहित करना चाहिये। वेश्याओं को यौन रोगों के दूरगामी परिणामों से अवगत होने के उपरान्त वेश्यायें वेश्यावृत्ति के पेशे को हतोत्साहित होकर छोड़ भी सकती हैं और अपना नया जीवन भी प्रारम्भ कर सकती हैं। वेश्यावृत्ति को भले ही समूल नष्ट न किया जा सके लेकिन वेश्याओं को यौन रोगों ने बचाव के तरीकों का ज्ञान देकर निश्चय ही यौन रोगों की बाढ़ को कुछ हद तक रोका जा सकता है
कंडोम यीन रोगों से बचाव का एक सहज एवं सस्ता उपाय है। हमारे देश में कंडोम यानि निरोध का प्रचलन अव चल पड़ा है। जब से देश में एड्स का भय फैला है लगभग तभी से कंडोम की विक्री में आशातीत वृद्धि हुई। सरकार की ओर से वेश्याओं को निःशुल्क निरोध या कंडोम प्रदान करने से यौन रोगों से रोका जा सकता है। सरकार के सहयोग से कंडोम निर्मित करने वाली कम्पनियों के निरीय सस्ते होते हैं। बाकी कम्पनियों के निरोव कुछ महंगे होते हैं। मंहगे होने का कारण उनकी आकर्षक पैकिंग तथा गुणवत्ता होता है। अस्पतालों में निःशुल्कं वितरित किये जाने बाले कंडोम गुणवत्ता की दृष्टि से उपयुक्त नहीं पाये जा रहे हैं। अधिकांश पुरुपों एवं स्त्री उपभोक्ताओं की शिकायत अक्सर मिलती रहती है कि ये कंडोम सम्भोग के दौरान फट जाते हैं और सुरक्षा का अन्त हो जाता है। सरकार को इप्स सन्दर्भ में विशेष व्यान देना चाहिये तभी यौन रोगों से सुरक्षा सम्भव हो सकेगी अन्यथा नहीं। परिवार कल्याण मंत्रालय को चाहिये कि इस सन्दर्भ में वह योग्य तथा ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति करे ताकि कंडोम की गुणवत्ता पर उचित ध्यान दिया जा सके।
उल्लेखनीय यह है कि जब से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 'एड्स' का प्रचार-प्रसार हुआ है तब से विश्व के सभी देशों में यौन रोगों से घयाब के प्रति जागरूकता बढ़ी है। जबकि इसके पूर्व ऐसा नहीं था। आजकल हमारे देश में जिला अस्पतालों में एड्स एवं बीन रोगों के लिये अलग विभाग खोल दिये गये हैं। एड्स है अथवा नहीं ? इसके लिये जिला अस्पतालों में निःशुल्क व्यवस्था प्रदान कर दी गई है। ध्यान रखें यौन रोगों के बाद एड्स की सम्भावना प्रवल हो सकती है। एड्स से यचाव का सर्वोत्तम उपाय यही है कि यौन रोगों से बचा जा सके। यौन रोगों से बचाव का उचित उपाय कंडोम है। स्वस्थ स्त्री-पुरुप यदि अस्वस्थ स्त्री-पुरुषों से यौन सम्बन्ध न रखें तो बचाव शतप्रतिशत हो सकता है। इसके अलावा वेश्यागमन पर भी अंकुश लगना अति आवश्यक है। वेश्याओं के सम्पर्क में जाने वाले पुरुप निश्चय ही अपनी पत्नी को भी यौन रोग दे देते हैं। इस मामले में पत्नी को सतर्क रहना चाहिये। लेकिन पत्नी अगर अनपढ़ है तो उसका अपने व्याभिचारी पति से सुरक्षित बचा रह पाना असम्भव है। पढ़ी-लिखी स्त्री भी यदि जागरूक प्रवृत्ति की नहीं है तो वह भी अपने व्याभिचारी पति से सुरक्षित नहीं रह सकती जागरूक पत्नी सन्देह होते ही तब तक अपने पति से यौन संबंध विच्छेद कर सकती है जब तकं पति के रक्त एवं मूत्र की रिपोर्ट 'निगेटिव' नहीं आ जाती। ऐसा नहीं है कि केवल पुरुष ही व्याभिचारी होते हैं। इस सन्दर्भ में स्त्रियाँ भी दोपी हो सकती हैं। सम्भव है कि विवाह के पूर्व स्त्री के संम्बन्ध गैर पुरुषों से रहे हों और उनमें से कोई या सभी यौन रोगों से पीड़ित हों और विवाह के पूर्व से ही अविवाहित युवती यौन रोगों से ग्रस्त हो चुकी हो। ऐसी अवस्था में विवाह के पश्चात् वह स्वस्थ पति को भी रोगी बना सकती है। विवाह के बाद भी स्त्री का यौन सम्बन्ध किसी ऐसे पुरुष से हो सकता है जो यौन रोगी हो।"
विदेशों में विवाह के पूर्व यौन रोगों से मुक्त मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त करना अनिवार्य हो चुका है। विशेष करके जब से एड्स की बाढ़ आयी है तब से कई देशों में विवाह के पूर्व ही युवक-युवती के लिये मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त करना अनिवार्य योपित किया जा चुका है। विवाह के पश्चात् भी एक निश्चित अवधि के उपरान्त मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त करते रहने का भी प्रावधान है। इससे यौन रोगों की बाढ़ पर अंकुश लगाने में आशातीत सफलता प्राप्त होगी, ऐसा चिकित्सा वैज्ञानिकों का मत है। हमारे देश में अभी इस प्रकार की व्यवस्था नहीं बनी है कि विवाह के पूर्व लड़के-लड़की के रक्त-मूत्र की जाँच की मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त किया जाये। लेकिन आशा है कि जल्दी ही ऐसा होने लगेगा।
यूरोपीय देशों में यह व्यवस्था भी कर गई है कि उनके देश की सीमा में प्रवेश करने वाले हर स्त्री-पुरुष को 'एड्स मुक्त' सर्टिफिकेट पेश करना अनिवार्य होगा। यदि एड्स मुक्त सर्टिफिकेट यार्डी के पास उपलब्ध नहीं होगा तो उसको उस देश में घुसने की अनुमति प्रदान नहीं की जायेगी जिसमें वह जाना चाहता है। विदेशों में, तो वेश्याओं ने भी यौन सम्वन्ध स्थापित करने के पूर्व 'एड्स मुक्त' सर्टिफिकेट की मांग करनी प्रारम्भ कर दी है। जबकि हमारे देश में अभी यह जागरूकता नहीं आ पायी है। हमारे देश की वेश्याओं में, इस प्रकार की जागरूकता का अभाव इसलिये भी है क्योंकि हमारे देश की वेश्यायें कम पढ़ी-लिखी अथवा अनपढ़-निश्क्षर होती हैं। निरक्षर स्त्रियों में इस प्रकार की सोच-समझ हो पाना असम्भव है। इस देश में वैसे भी इस प्रकार की जागरूकता की आशा नहीं की जा सकती।" इस दिशा में यदि जागरूकता की आशा की जा सकती है तो इसके लिये स्वयंसेवी
संगठनों-संस्थानों तथा स्वयं सरकार को भी पहल करनी पड़ेगी तभी वेश्याओं में इस प्रकार की जागरूकता आ सकेगी।
यह विडम्बना ही नहीं अपितु दुर्भाग्य का विषय भी है कि यौन रोग हजारों वर्षों से वेश्याओं एवं व्याभिचारी पुरुषों द्वारा फैलते हुये फल-फूल रहे हैं। वेश्याओं के रूप में समूचे विश्व में यौन रोगों की दुकानें खुली हुई हैं। यह ऐसी दुकानें हैं जो किसी बीहड़, वियावन जंगलों, पहाड़ों में भी खुल जाये तो ग्राहक हजारों रुपये खर्च करके वहाँ भी पहुँच जायेंगे। वेश्यायें अपनी दुकान स्वेच्छा से अथवा दबाव में आकर खोलकर बैठ जाती हैं और अपनी कीमत बताती हैं। ग्राहक के रूप में व्याभिचारी पुरुप दुकानों में पहुँच जाते हैं और मोल-भाव प्रारम्भ कर देते हैं। मोल-भाव हो जाने के पश्चात् समझौता हो जाता है और वेश्या ग्राहक यानि व्याभिचारी पुरुष को एक कक्ष में लेकर चली जाती है।'
जिस कक्ष में वेश्या व्याभिचारी पुरुष को लेकर जाती है वह संजा-संवरा भी हो सुकता है अथवा अति साधारण गन्दा मैला-कुचला घटिया स्त्रहीन भी। व्याभिचारी जितना खर्च करने की क्षमता रखता है, कक्ष में उतनी ही सुविधायें उपलब्ध रहती हैं।
इस कक्ष में व्याभिचारी व्यक्ति उक्त वेश्या को सहवास के लिये तय की गई रकम प्रदान करता है। व्याभिचारी व्यक्ति यह कभी नहीं सोचता कि वह कथित वेश्या का शरीर भोग करने नहीं अपितु वेश्या के शरीर में व्याप्त भयंकर जानलेवा रोगों को लेने आया है।.. यहाँ सौदा स्त्री और पुरुष के बीच सहवास के लिये न होकर निश्चय ही व्याभिचारी पुरुष और स्त्री के बीच गुप्त रोगों की खरीद-फरोख्त के लिए होता है। स्त्री वेश्या सहवास के माध्यम से गंभीर जानलेवा गुप्त रोग बेचती है और पुरुषु स्वेच्छा से सहवास के माध्यम से अपनी खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा देकर खतरनाक प्रणयातक गुप्त रोग खरीद कर ते जाता है और हिस्सा देकर खतरनाक प्राणघातक गुप्त रोग खरीद कर ले जाता है और घर जाकर उपहार में अपनी पत्नी तथा बच्चों को दे देता है। इसके अलावा यदि उक्त व्याभिचारी पुरुप का सम्बन्ध किसी अन्य गैर स्त्री से से है तो यह उसे भी गुप्त रोग भेंट में दे देता है और यह सिलसिला चलता रहता है। वेश्यायें गुप्त रोग बेचती हैं और और व्याभिचारी पुरुप उन्हें खरीद कर अन्य लोगों को उपहारस्वरूप देते रहते हैं। गुप्त रोगों की खरीद-फरोख्त का यह धन्धा सदियों से चलता जा रहा है और निश्चय ही यह आगे भी चलता रहेगा। गुप्त रोगों की खरीद-फरोख्त के बाजारों को जन आंदोलनों से बन्द किया जाता रहेगा तथा यही बाजार एक स्थान से उठकर दूसरे स्थान पर चले जायेंगे, यह सिलसिला भी चलता रहेगा। गुप्त रोगों से ग्रस्त व्याभिचारियों और वेश्याओं का अन्त होता रहेगा तथा उनके स्थान पर नई येश्यायें तां नये व्याभिचारी पुनः प्रकट होते रहेंगे और गुप्त रोगों की बिक्री तथा खरीद-फरोख्त शायद तब तक जारी रहेगी जब तक वैश्यायें तया व्याभिचारी मानव जाति इस घरा पर रहेंगे।
- हर व्याभिचारी पुरुष और वेश्या जानती है कि वह जो कुछ कर रहा है अबवा कर रही है, गलत है उससे जान का खतरा, आयु घट जाती है। लेकिन फिर भी दोनों का आपसी सम्बन्ध चलता रहता है।
- ध्यान रखें-वेश्यायें एक प्रकार से सार्वजनिक मूत्रालय की भाँति होती हैं जिसमें जब चाहा, जैसे चाहा मूत्र त्याग कर लिया जाता है। व्याभिचारी पुरुप नीति-अनीति की परवाह किये बिना कामवासना से वशीभूत होकर वेश्या के पास जाता है। वह यह भी नहीं सोचता कि वह वेश्या के पास जाकर स्वयं ही नहीं बल्कि अपने पूरे परिवार को खतरे में ही
नहीं डाल रहा है बल्कि अपनी एवं अपने परिवार की प्रतिष्ठा को भी धूल-धूसरित कर रहा
है।
- गुप्त रोगों की खरीद-फरोख्त की रोकथाम के लिये देश की सामाजिक संस्थाओं के साथ-साथ सरकार को भी एक होकर सहयोग करना चाहिये। देश में कुछ इस प्रकार का ठोस कार्यक्रम बनना चाहिये जिसके तहत जैसे ही किसी गुप्त रोगी की पहचान हो, उसको पूर्ण ब्रह्मचर्य में रहने का निर्देश दिया जाये। इसके साथ ही ऐसे प्रयास भी किये जाने चाहिये कि पहचाने जा चुके रोगी को दुबारा वेश्याओं के पास से जाने से रोका जा सके।
इस पुस्तक की रचना का मूल उद्देश्य यौन रोगों की सम्पूर्ण जानकारी सहित यौन रोगों की आधुनिक एलोपैथिक एवं पारंपरिक चिकित्सा प्रस्तुत करना है। जनहित में प्रकाशित की जा रही इस पुस्तक में पाठकों की जानकारी के लिये यौन रोगों से संदर्भित सारगर्भित जानकारी सहित चिकित्सा प्रस्तुत करना इस पुस्तक की विशेषता है।
यौन रोगों एवं यौन रोगों की चिकित्सा विषयक जानकारी प्रस्तुत करने के पूर्व पुरुषों... के यौन अंगों की जानकारी यहाँ प्रस्तुत करना अति आवश्यक है। वोन अंगों की जानकारी हो जाने से ही यौन रोगों को ठीक-ठीक समझा जा सकता है। पुरुषों के यौन अंगों की जानकारी नीचे सविस्तार प्रस्तुत की जा रही है, जो इस प्रकार है-