पुरुषों की जननेन्द्रियाँ
पुरुष बाँझपन को ठीक से समझने के लिए पुरुष जननेन्द्रिय को समझना आवश्यक है। इसके अभाव में बाँझपन सम्बन्धी भाषा को भी ठीक-ठीक समझना कठिन है। यदि समझ में कुछ आ भी जाए तो उसे अधूरा ज्ञान ही कहा जायेगा। अतः विषय को सरल बनाने के लिए इन अंगों के सम्बन्ध में कम से कम संक्षिप्त वर्णन परमावश्यक है :-
मुख्य अंग :-
1. पौरुष ग्रंथि (Prostate Gland)
2. वीर्य ग्रंथियों (Seminal Vesicles)
3. वीर्य प्रणालियाँ (Vas Deferens)
4. वृषणों की डोरी (Spermatic Cord)
5. अण्डकोष, फोते (Scrotum)
6. वृषण, खसिये, अण्ड (Testes, Testicles)
7. शिश्न, इन्द्री, लिंग (Penis)
8. वीर्य उछालने वाली नलियाँ (Ejaculatory Duct)
1. पौरुष ग्रंथि (Prostate Gland):-
यह पुरुष जननेन्द्रिय का प्रधान अंग है। यह अखरोट के आकार की हल्के पीले रंग की ग्रंधि होती है जो मूत्राशय ग्रीवा के नीचे मूत्र मार्ग के मूल भाग (जड़) में मूत्र प्रणाली (Urethra) को चारों ओर घेरे रहती है। यह बाहर से एक दृढ़ तन्तुयुक्त स्नायुमय कोष से ढ़की रहती है। इसकी अन्दर से संरचना शहद के छत्ते के समान होती है। इस ग्रंथि में 10-12 या अधिक अति सूक्ष्म नालियाँ छिद्रों द्वारा मूत्र मार्ग में खुलती हैं। युवावस्था होने पर कामोत्तेजना के समय इसमें से गाढ़ा पारदर्शक तरल पौरुप रस (Prostate Secretion) निकलने लगता है। यह रस मूत्रमार्ग को गीला और चिकना कर देता है। यह रस पुरुष जननांगों को स्वस्थ रखने में भी सहायक होता है। चूंकि यह उत्तेजना के समय ही लिंग में पहुँच जाता है। इसलिए संभोग के समय, शुक्रक्षरण (वीर्यपात) के समय वीर्य में मिल जाता है। इस ग्रंथि का वजन आठ ग्राम के लगभग होता है। वृद्धावस्था में स्नायुतन्तुओं के बढ़ जाने से यह ग्रंथि आकार में बड़ी हो जाती है जिससे मूत्रनली पर दबाव पड़ने से मूत्रावरोध (मूत्र बन्द) हो जाता या मूत्र रुक-2 कर कष्ट से आता अथवा मूत्र अनियंत्रित हो जाता है।
2. वीर्य ग्रंथियाँ ( Seminal Vesicles): -
संरचना की दृष्टि से यह मधुमक्खी के छत्ते (शहद के छत्ते) जैसी झिल्ली से निर्मित होती है। यह गाय की पूँछ जैसी दो थैलियाँ मूत्राशय के नीचे गुदा के बीच प्रोस्टेट ग्लैण्ड (पौरुष ग्रंथि) के मध्य में होती हैं। यद्यपि इनका आकार देखने में रुई की ग्रंथि के समान होता है, परन्तु वास्तव में यह पेंचदार (बल खाई नलियाँ) है जो दृढ़ तन्तुयुक्त झिल्ली में बन्द होती है। बलखाई हुई दशा में प्रत्येक थैली 5-6 सें.मी. लम्बी और 2 सें.मी. से कम अर्थात लगभग आधा इंच चौड़ी होती है। यदि इसके बल खोल दिए जायें तो यह लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर तक लम्बी और एक पंख की कलम के बराबर मोटी होती है। इसका चौड़ा सिरा पीछे और पतला सिरा सामने होता है। ये नलियों प्रोस्टेट ग्लैण्ड की जड़ के समीप अपनी ओर की 'वास डेफेरन्स' वीर्य प्रणाली से मिलकर एजेकुलरी डक्ट (Ejaculary duct) बनाती हैं। इसकी बनावट में खानेदार माँस के और म्यूकस मेम्बरेन (Mucous Membrane) की क्रमशः तीन परत होती है। यह मूत्राशय पृष्ठ में तिरछी रहने वाली वीर्य को उछालने वाली नालियों की सहचरी होती हैं।
वीर्य ग्रंथियों का कार्य (Function of Seminal Vesicles)- इन थैलियों के मुख्य दो कार्य हैं-
(i) पुरुर्ष अण्डों (Testes) में वीर्य उत्पन्न होकर इनमें इकट्ठा होता रहता है।
(ii) इनमें एक विशेष प्रकार का तरल उत्पन्न होता है जो वीर्य को शुद्ध करता है। नवीनतम खोजों (अनुसंधानों) से प्रमाणित हुआ है कि दूसरा कार्य अपेक्षाकृत, अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जब किसी मनुष्य का वृषण निकाल दिया जाता है तो उस ओर की यह थैली सिकुड़कर छोटी नहीं होती बल्कि पूर्ववत् (पहले की भाँति) ही स्वस्थ और स्वच्छ रहती है। इसमें वीर्य एकत्र (जमा) नहीं होता है। अन्य कोई परिवर्तन देखने में नहीं आता है।
पशुओं जैसे घोड़े, रीछ आदि में यह थैलियों बहुत बड़ी होती हैं परन्तु सीधी मूत्र मार्ग में जाकर खुलती हैं। ऐसी दशा में न तो इनके अन्दर वीर्य इकट्ठा होता है और न ही इनको वीर्य की थैलियाँ कह सकते हैं। कुछ पशुओं जैसे कुत्तों आदि में यह थैलियाँ होती ही नहीं हैं।
3. वीर्य प्रणालियाँ (Vas Deferens):- ये दो नलियाँ होती हैं जो अपनी ओर के वृषणों (खसिये) के ऊपरी भाग उपाण्ड (Epididymis) के निचले सिरे से आरम्भ होकर स्परमैटिक कॉर्ड (वृषणों की डोरी) के अन्दर से गुजर कर ऊपर को जाती हैं परन्तु जिस समय ये नलियाँ जाँघ की नाली के अन्दर से होती हुई मुड़कर वीर्य ग्रंथियों की नाली से मिलकर एजेकुलरी डक्ट बनाती हैं और फिर मूत्र मार्ग में जाकर खुलती हैं। इनकी बनावट में उपरोक्त तीन परत होती हैं। प्रत्येक नली की लम्बाई लगभग दो फुट होती है।
कार्य (Function)-ये नलियों वीर्य को वृषण (Testes) से लेकर वीर्य ग्रंथियों तक और वहाँ से मूत्र मार्ग के पिछले भाग तक पहुँचाती है।
4. वृषणों की डोरी (Spermatic Cord):- वृषण (खसिये) फोते के अन्दर इस डोरी से लटका रहता है इसी कारण इसे डोरी कहते हैं। जब वृषण (खसिये) पेट की दीवार में से होकर फोते में जाते हैं तो वह अपने साथ अपनी रक्तवाहिनीयाँ, स्नायु, वास डेफेरेन्स को भी खींचकर ले जाते हैं। उपरोक्त रचनायें जाँघ की नाली (Anguinal Canal) के छेद के स्थान पर आपस में मिलकर वृषण की डोरी बनाती हैं। अतः यह डोरी वास डेफरेन्स, खसिया की धमनी, शिरा लिम्फेटिक्स और स्नायु के आपस में मिलने से बनती है जिसको संयोजक तन्तु (Connective Tissues) जोड़ते हैं। दायीं ओर की डोरी बायीं ओर की डोरी से कुछ लम्बी होती है। पेडू के बाद पुरुष जननेन्द्रियाँ (मर्दाना जननांग) होते हैं-1. फोते, 2. अण्डग्रंथियों
(खसिये), 3. शिश्न और 4. इन्द्री । 5. अण्डकोष, फोते (Scrotum):- यह एक थैलीनुमा संरचना है जो त्वचा से
निर्मित (दीले-ढ़ाले) दोनों अण्डग्रंथियों (Testes) के संग्राहक हैं अर्थात् दोनों अण्डग्रंथियाँ (Testes) स्पर्मेटिक कॉर्ड (Spermatic Cord) या शुक्ररज्जु की सहायता से इसी थैली में लटकी रहती हैं। अण्डकोष एक पर्दे (Raphe) द्वारा दो भागों में विभाजित (बंटे हुए) होते हैं। इसके ऊपर की ओर का अन्तिम भाग शिश्न (लिंग) के मूल तक होता है। नीचे का भाग पेरीनियम (Perinium) (फोता और गुदा के बीच का मध्य भाग) सीवन निरन्तर गुदा तक होता है। बायाँ अण्डकोष कुछ लम्बा होता है। फोता गर्मी के मौसम में, दुर्बलता के समय एवं वृद्धावस्था में अपेक्षाकृत ढ़ीला और शिकनो (रखा) रहित हो जाता है। सर्दी के मौसम में, युवावस्था में और शरीर के शक्ति सम्पन्न होने पर छोटा और शिकन युक्त हो जाता है। फोते की दो परत होती हैं। बाहरी परत पतली चर्म रेखा वाली होती और उस पर टेढ़े-मेढ़े बाल होते हैं। भीतरी परत लालिमायुक्त माँस की तन्तुओं की बनी होती है। यह परत मध्यावरण (Scrotal Pouch) द्वारा दो भागों में बँट जाती है। इसके प्रत्येक भाग में 1-1 वृषण (Testis) होता है। इस परत को डारटोस ट्यूनिक (Dartos Tunie) कहते हैं। इसके अतिरिक्त इसके अन्दर एक दूसरी तह के साथ तीन परतें और होती हैं जो शुक्ररज्जु (Spermatie Cord) पर भी इसी क्रम से चिपकी होती हैं।
6. वृषण, खसिये, अण्डग्रंथि (Singular Testes, Plural Testes) :- यह वीर्य पैदा करने वाली ग्रंथियाँ होती हैं। यह देखने में अण्डाकार, सख्त तथा बड़ी गोली की भाँति
होती हैं। इनमें सफेद लेसदार वीर्य (Semen) पैदा होता है। जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तब दोनों वृषण पेट के अन्दर पेरीटोनियम के पीछे और वृक्कों के नीचे होते हैं। परन्तु जनत से डेढ़-दो मास पहले ऐंगुलन केनाल के छेदों के मार्ग से दोनों खसिये धीरे-धीरे उतरक अण्डकोषों में पहुँच जाते हैं। प्रत्येक अण्डग्रधि लगभग 4 से 6 सें.मी. लम्बी, 2.5 सें.मी. इंच) चौड़ी तथा तीन सें.मी. (1% इंच) मोटी होती हैं। इसका वजन 10 ते 14 ग्राम तक होत है, यह सामान्य वजन है। परन्तु अपवाद स्वरूप 29 ग्राम तक भी देखा जाता है। इनमें शुक्रवार बनकर शुक्रग्रंथि में जमा होते रहते हैं।
7. शिश्न, इन्द्री, लिंग (Penis): - पुरुष इन्द्री मैथुन (Inter Course) का प्रधान है। स्त्री की योनि तक पुरुष का वीर्य इत्ती से निकलकर जाता है। इसकी लम्बाई और मोटाई का कोई प्रामाणिक माप नहीं है। यह विभिन्न देशों, विभिन्न आयु, व्यक्त्ति विशेष आदि पा निर्भर करता है। हमारे देश के नवयुवकों में इसकी लम्बाई प्रायः सामान्यतः 4.5 इंच तया अधिकतम 7.5 इंच तक होती है। यह माप लिंग की उत्तेजित अवस्था का होता है। विना उत्तेजित अवस्था (सुप्तावस्था) में इसकी लम्बाई प्रत्येक व्यक्ति की एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न होती है।
8. वीर्य उछालने वाली नलियाँ (Ejaculatory Ducts): - ये संख्या में दो होती
हैं। वीर्य की ग्रथियों की नालियों और वीर्य प्रणालियों के अन्तिम भाग के साथ मिलने से बनती हैं। यह लगभग दो सेंटीमीटर लम्बी होती हैं। यह प्रोस्टेट ग्लैण्ड की जड़ से आरम्भ होकर प्रोस्टेटिक पोरशन में वीरोमानटीनम के सामने समाप्त हो जाती हैं। इन्हीं नालियों द्वारा मैथुन के अंतिम समय में वीर्य उछलकर योनि में दूर तक गिरता (पहुँचता) है।