श्वित्र, श्वेतकुष्ठ, धवल रोग, श्वेत दाग ल्यूकोडर्मा (Leucoderma)
यह सर्वविदित एवं परिचित रोगों में से एक रोग है। इसमें आधा से एक इंच तक पहले त्वचा का सामान्य रंग लुप्त होकर सफेद हो जाता है, वहाँ के रोम भी सफेद हो जाते हैं। पुनः यह वृद्धि करता हुआ, एक दाग दूसरे दाग से मिलता हुआ सर्वांग पूरे शरीर पर फैल जाता है। इसका निश्चित कारण अभी तक पता नहीं बला है कि अमुक कारण से ही यह रोग होता है लेकिन गर्म देशों में, गोरों के अपेक्षा कालों की त्वचा पर इसका प्रकोप अधिक देखा गया है। शरीर में उपदंश या पारे के दोष, रीढ़ की हड्डी में दोष हो जाना, सेप्टिक कोक्कस के दुष्प्रभाव को भी इस रोग का कारण माना जाता है।
Septic Coccns) आदि ( इस रोग में केवल त्वचा का ऊपरी भाग ही प्रभावितं होता है। अतः रोगी को किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव नहीं होता है। केवल आक्रान्त भाग सामान्य से अलग रंग का होने के कारण भद्दा दिखाई देता है। यह स्पर्श से, एक साथ रहने से या साथ-साथ खाने से संक्रमित नहीं होता। इसे वंशानुगत कहकर कलंकित करना भी उचित नहीं है। क्योंकि ऐसे कई उदाहरण सामने हैं, जिनमें पिता इस रोग से ग्रसित हैं परन्तु किसी सन्तान में यह दोष नहीं देखा गया है। चिकित्सीय दृष्टि से यह रोग जटिल तो अवश्य है लेकिन रोगी एवं चिकित्सक धैर्य रखें तो दुसाध्य नहीं है।
एक और दाग-कभी-कभी चेचक के बाद सर्वांग शरीर पर छोटे-छोटे गद्वेनुमा दाग पड़ जाते हैं जिन्हें लोग दुस्साध्य मानकर छोड़ देते हैं। ये दाग शरीर के अन्य भागों की अपेक्षा चेहरे को अधिक बदसूरत बना देते हैं। योग्य चिकित्सक द्वारा, सुचिकित्सा से इन गड्रेनुमा दागों को भरना, मिटाना सम्भव हो जाता है।
आशा है कि पाठकगण अभी तक त्वचा की संरचना (Anatomy) के अध्ययन के बाद चेहरे की त्वचा को बदसूरत बनाने वाले रोगों (मुँहासे, काले दाग, सफेद दाग, चेचक के दान) आदि से भी पूर्णतः परिचित हो गये होंगे। आगे इनकी चिकित्सा का अध्याय प्रारम्भ होगा। जिसे पठन, अध्ययन, मनन कर अपने रोगी को सन्तुष्ट कर, यश और अर्थ के भागी बनें। इसी आशा के साथ, अब इसे यहीं विराम देता हूँ।