मुँहासे, युवापीड़िका, वयोव्रण, मुखदूषिका
(Acne) या (Acne Vulgaris)
यह एक ऐसा चर्म रोग है जो मात्र चेहरे तक ही सीमित होता है। यह उसी समय उभरता है जिस समय स्त्री या पुरुष अपने आपको, अपने चेहरे को सबसे सुन्दर रूप में देखना चाहता है अर्थात् युवावस्था में।
यह युवक-युवतियों के चेहरे पर होने वाला चर्म रोग है। युवक-युवतियों के चेहरे पर पहले छोटी-छोटी एक के बाद फुंसियाँ निकल आती हैं जो धीरे-धीरे सख्त होती जाती हैं। उनमें पीप पड़ जाती है। यदि सावधानी नहीं बरती जाये तो गन्दे नाखूनों के द्वारा संक्रमित होकर विकृत रूप भी ले लेती है। साधारण ढंग के मुँहासों में दानों के मुँह नुकीले होते हैं और मामूली दबाने से, अन्दर के चर्बीली कीलें बाहर निकल आती हैं।
कारण-किसी विशेष कारण के सम्बन्ध में यह कहना कि "इस रोग का मुख्य कारण यही है" कठिन है। क्योंकि शारीरिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ युवक-युवतियों को भी इससे परेशान होते देखा गया है जबकि युवावस्था में ही कुछ ऐसे युवक देखे गये हैं जो कमज़ोर होते हुए भी मात्र 2-4 कील-मुँहासे के शिकार हुए हैं। लेकिन यह विशेष आयु का ही रोग है जो कि प्रायः कम या अधिक सब युवक-युवतियों को होता है, अतः इसका सम्बन्ध किसी हॉर्मोन्स से हो, ऐसा माना जाता है। इसके अतिरिक्त यह बसा ग्रंथियों के विकार तथा प्रणाली विहीन ग्रंथियों के असन्तुलन से उत्पन्न होती है। ऐसा शरीर विज्ञानवेत्ताओं का मानना है। पुरुषों के अण्डकोषों के अन्तःस्राव और स्त्रियों में डिम्ब के अन्तःस्राव के विकार, भोजन सम्बन्धी दोष, अति परिश्रम वा व्यायाम, भोजन में वसा एवं कार्बोहाइड्रेट की बहुलता, अधिक हस्तमैथुन आदि मुँहासे के कारण हैं।
सावधानियाँ-यह एक निश्चित अवस्था का निश्चित रोग है जो कि पीड़िकाओं के रूप में चेहरे पर होता है। इसे स्वाभाविक समझ कर अधिक छेड़छाड़ करना उचित नहीं हैं यों समझें कि ये स्वतः धीरे-धीरे सामान्य हो जायेंगे। परन्तु कुछ लोग ऐसा न करके उद्भेद स्वरूप निकली फुंसियों को शीघ्र मिटाकर चेहरे को चिकना करने के उद्देश्य से नाखूनों के सहारे कीलों को छीलते रहते हैं। ऐसे प्रयास से कील तो निकल जाते हैं परन्तु वहाँ काले दाग पड़ जाते हैं तो काफी बाद तक भी ज्यों के त्यों बने रहते हैं। अतः नाखूनों से न दबायें, अन्यथा काले दाग हो जायेंगे।