विष

 विष क्या है ?


चरक संहिता के अनुसार अमृत के लिये जब देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया, उस समय अमृत निकलने से पहले एक विकराल घोर दर्शन, भयानक नेत्रों वाला, चार दाढ़ों वाला, हरे बालों वाला और अग्नि के समान दीप्त तेज पुरुष निकला। उसे देखकर सारे जगत् के प्राणी उदास, विस्मित, विषादयुक्त हो गये। चूँकि उस भयंकर पुरुप को देखने से दुनिया को विषाद हुआ था, इसीलिये उसका नाम "विष" हुआ।

ब्रह्मा जी ने उस विष को अपनी स्थावर और जंगम दोनों तरह की सृष्टि में स्थापित कर दिया। यही कारण है कि विष स्थावर और जंगम दो तरह के हो गये।

• सुश्रुत संहिता के अनुसार दोनों में थोड़ा अन्तर है-पृथ्वी के आदिकाल में ब्रह्मा जी इस जगत की रचना करने लगे, तब कैटभ नाम का दैत्य मद से मदमत्त होकर उनके कामों में विघ्न डालने लगा। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हुए। इनके क्रोध ने दारुण शरीर धारण करके उस कैटभ दैत्य को मार डाला। उस क्रोध से पैदा हुए, कैटभु को मारने वालों को देखकर देवताओं को विपाद और रंज हुआ, इसी से उसका नाम विप पड़ा। ब्रह्मा जी ने उस विप को अपनी स्थावर और जंगम सृष्टि में स्थान दे दिया अर्थात् न चलने-फिरने वाले वृक्ष, लता-पत्ता आदि स्थावर, सृष्टि में चलने-फिरने वाले साँप, बिच्छु, कुत्ते, बिल्ली आदि जंगम सृष्टि में उसे रहने की आज्ञा दे दी। इसी से चिप स्थावर और जंगम दो प्रकार के हो गये।

इस प्रकार विष की उत्पत्ति का सम्बन्ध तो दोनों में चरक और सुश्रुत में, तो थोड़ा अन्तर है लेकिन

 (1) बरसात में विष की उग्रता होती है और (ii) विष क्रोध से उत्पन्न होने के कारण गर्म तथा तीक्ष्ण होता है-इन विचारों से दोनों समान रूप से सहमत हैं।

विष के मुख्य भेद-विप के मुख्यतः दो ही भेद माने गये हैं

 (i) स्थावर विष जैसे-पेड़, पौधे, पादप, धातु, उपधातु आदि।

(ii) जंगम विष जैसे-सर्प, कुत्ता, बिच्छू, छिपकली, तेलिया साँप, पांगल गीदड़, चूहा, छछुन्दर, ततैया, बर्र, मकड़ी, मधुमक्खी, विषैले कीड़े, कनखजूरे आदि के दंश, मूत्र, पूरीप,. वीर्य, लाला स्राव, आर्तव, नख, मुख, गुदा के शब्द, गुदा, अस्थि, पित्त, दृष्टि, निःश्वास आदि अधिष्ठान होकर दूसरे मनुष्यों या जन्तुओं में समाविष्ट हो जाते हैं। सोदाहरण इन्हें नीचे स्पष्ट किया जा रहे है।

  • दंश वाले जीव - दाँत से काटकर विष का संक्रमण करने वाले में, जमीन पर रेंगने वाले साँप, गुहेरा, तेलिया कीट आदि।


  • मूत्र - मूत्र करके विष का संक्रमण करने वाले जीवों में मकड़ी, सर्पवासिक, तोरकवर्यकीट, कौडिन्य नामक कीड़े आदि।


  • मल - पाखाना करके विष फैलाने वाले कीड़े जैसे चिपपिट, पिच्चिटिक, कषाय वासिक आदि ।


  • वीर्य - इस वर्ग में चूहे, लूतायें आदि आते हैं। 


  • लाला स्राव - लार से विप संक्रमण करने वाले जीव जैसे - लूतायें आदि।


  • आर्तव - रजःस्राव से विष का संक्रमण करने वाले कीड़ों में मकड़ी की एक विशेष जाति के कीड़े होते हैं।

  • नाखून एवं मुँह (मुख) से संक्रमण करने वाले जीव जैसे - कुत्ते, बन्दर, मेंढक, सियार, विपखौपरा, छिपकली, चार पैर वाले कीड़े आदि।

  • पुच्छ भाग पर स्थिति कंटक टूंड - विच्डू, विश्वम्भर, राजीवमत्स्य (राजीव, मछली), उच्चिटिंग, झींगुर, समुद्री विच्छू आदि विषैले प्राणी इस वर्ग में आते हैं जो पूँछ पर लगे कंटक ट्रेंड से दूसरे जीव में विष संक्रमित करते हैं।


  • मुखसंदंश, विशर्धित तथा मलमूत्र से विष फैलाने वाले प्राणी-चित्रशिर, सग्ग्रवकुदि, शारिकामुख, अरिभेदक आदि।


  • मात्र मुँह से संदंश कर विष संक्रमित करने वाले - मक्खियाँ, जॉक, कर्ण मात्र।

  • अस्थि विष - विष से मृत मनुष्य या दूसरे जीव की हड्डियों, साँप के काँटे सदृश अस्थि, वर्र और मछली की हड्डियाॅं।


  • पित्त विष - शकुलि मछली, रक्तराजि, वर्र (यरती) और मछली आदि के पित्त सेदूसरे प्राणी और मनुष्य में फैलता है।


  • शूकतुण्ड से विष फैलाने वाले जीव - बड़े मच्छर, उच्चिटिंग, वर्र, गोचर (शतपदी)शूक, बलमिका, श्रृंगी, भौंरा आदि।

  • शव से विष फैलने वाले - मरा साँप और विषैले कीड़े आदि।


  • मुर्दा माँस से विष फैलाने वाले - मरा काला साँप, मरी मछली, कुत्ते या सियार का माॅंस, सनगोय का मॉस, लकड़बग्घा का माँस, मनुष्य या गाय का माँस आदि ।


  • त्वचा से विष - कृष्ण सर्प, तेलिया साँप आदि।


नोट-सामान्य अध्ययन की दृष्टि से विषों के तीन भेद माने जाते हैं।

 (ⅰ) स्थावर (ii) जंगम (iii) कृत्रिम। प्रथम दो के सम्बन्ध में पाठक अध्ययन कर चुके हैं। तीसरा कृत्रिम विष के उदाहरण हैं। अनेक प्रकार के तेजाब (Acids), क्षार (Alkali), रसायन (Chemicals) आदि। 

मुख्य भेदों में स्थावर, जंगम आदि के साथ इसे इसलिये नहीं दर्शाया गया है कि सूक्ष्म अध्ययन से देखा जाये तो यह भी, जंगम जंगम, जंगम स्थावर, स्थावर + जंगम, धातु + अधातु या इसी प्रकार के अन्य योगों के द्वारा ही प्रस्तुत हो पाते हैं अर्थात् मूलतः दो ही मानना उचित होगा। जिनके विशेष योगों, क्रियाओं एवं परिवर्तनों द्वारा ही तीसरे प्रकार के कृत्रिम विष बनाये जाते हैं। क्योंकि विज्ञान के द्वारा परिवर्तित रूप तैयार करना सम्भव होता है, प्रकृति की तरह नया पैदा करना सम्भव नहीं होता है। किन्हीं दो को मिलाकर तीसरा विष बनाना विज्ञान के लिये आसान है। कृत्रिम विष भी इन्हीं तरह के संयोगों से प्रस्तुत किये जाते हैं।


स्थावर, जंगम एवं कृत्रिम विष का प्रभाव मानव शरीर के किस/किन अंगों को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसके आधार पर जो वर्गीकरण किया गया है। वह इस प्रकार हैं-

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