आँत उतरना, आन्त्र वृद्धि
हर्निया (Hernia)
परिचय :- उदर या पेट के भीतर आँत का कुछ अंश, उदर के निचले भाग (निम्नांदर) नामि के गढ़े में या अण्डकोष के अन्दर जाने का नाम आँत उतरना, आन्त्रवृद्धि या हर्निया है।
मुख्य कारण :- सामान्यतः वे सब क्रियायें हर्निया का कारण हो सकती हैं जिनमें उदर की माँसपेशियों पर जोड़ पड़ता हो या वे कड़ी हो जाती हों। इनके अतिरिक्त आयातजन्य (चोट या जोरों का धक्का लगना) भी इस रोग का कारण हो सकता है। इस प्रकार भारी वजन उठाना, जोर से हँसना, चीत्कार के साथ रोना, छींकें अधिक आना, घोड़े की सवारी करना, शक्ति से अधिक परिश्रम करना, पेशाब या प्रसव के समय अधिक कुँचना, कब्ज़ रहने पर नीचे की ओर अधिक जोर लगाकर कॉखना, अधिक साईकिल या रिक्शा चलाना, भोजन के तुरन्त बाद दौड़कर या तेजी से चलना, लगातार पैदल ही लम्बी यात्रा करना, अनवरत (लगातार) गहरे कुएँ से पानी खींचना आदि मुख्य कारण हैं।
गौण कारण:- उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी होते हैं, जैसे शरीर के अंग-प्रत्यंगों से विविध प्रकार की चेष्टायें करना, वायु कुपितकारक आहार लेना, ठण्डे गहरे पानी में अधिक देर तक रहकर स्नान करना आदि गौण कारण हैं। इन कारणों से रोग का सीया सम्बन्ध तो नहीं होता है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से ये भी हर्निया के कारण होते हैं। किसी भारी वजन को ठेलना या बराबर भारी ठेले को ठेलते रहने का काम भी हानिकारक है। इन कारणों से आंत का एक भाग सिकुड़ कर वंक्षण नलिका से अपन मूल स्थान से नीचे अण्डकोष, जाँय या ऊपर महा प्राचीरा पेशी में पहुँच कर ग्रंथि के सदृश शोय (सूजन) उत्पन्न कर देता है इसी को हर्निया कहते हैं।
लक्षण :- हर्निया के स्थान पर एक उभार सा प्रतीत होता है जो लेटने की स्थिति में प्रायः स्पष्ट नहीं दिखता या पैनी (सूक्ष्म) दृष्टि से ही देखना संभव होता है। इस सूजे (हर्निया) स्थान पर अन्दर से एक प्रकार की बेचैनी और पीड़ा की अनुभूति होती है। यह सूजन और शूल अथवा बेचैनी तब और बढ़ जाती है जब हर्निया उतर कर अण्डकोष में आ जाता है। सामान्यतः अनुभवियों के द्वारा उतरे हुए आँत के भाग को वापस अपने स्थान पर लाया जाता है, लेकिन तीव्रशूल या कब्ज़ की स्थिति में ऐसा करना कुछ कठिन हो जाता है।
हर्निया की पहचान :- दोनों जाँघों की गिल्टियों वाले भाग में से किसी एक भाग की ओर की गिल्टियाँ हो जाती हैं। खड़े होने की स्थिति में यह सूजन स्पष्ट दिखती है। लेटने या लेटते समय गहरे साँस लेते समय यह सूजन अपेक्षाकृत कम प्रतीत होती है। जोर से दबाकर अपने स्थान पर पहुँचा देने से सूजन अस्थायी रूप से दूर हो जाती है।
परिणाम :- धीरे-धीरे दवाने से आँत अपने स्थान पर आ जाती है। कष्ट का निवारण हो जाता है परन्तु अनुभव के अभाव में यदि दक्षतापूर्वक ऐसा नहीं किया जाये तो सूजन और दर्द में वृद्धि हो जाती है, साथ ही ज्वर के, हिचकी, पेट में गैस आदि लक्षण भी प्रारम्भ हो जाते हैं। धीरे-धीरे आंत के सड़ने के कारण सर्वांग शरीर संक्रमित होकर मृत्यु भी सम्भव है। अतः सामान्य उपचार और औषधियों से शीघ्र लाभ न होते देखकर शल्य चिकित्सक से शल्य चिकित्सा के सम्बन्ध में परामर्श कर लेना चाहिए।
प्राथमिक एवं सामान्य उपचार :
(i) सर्वप्रथम रोगी को किसी ऐसे बिछावन पर चित्त लिटा दें जो ठोस, समतल और आरामदेह हो। चारपाई (खटिया) का प्रयोग कभी न करें। फिर कमर के नीचे इस प्रकार का तकिया रखें। जिससे कमर और पेट ऊँचे हो जायें, सीना (छाती) और सिर थोड़ा नीचे हों जायें।
(ii) एरण्ड का तेल शोथ के स्थान पर लगायें।
(iii) फिर रोगी की बगल की ओर इस प्रकार खड़े हो जाएँ कि आपकी पीठ रोगी के
सिर की ओर हो और आपका चेहरा रोगी के पाँवों की ओर हो।
(iv) अब धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों से फूले हुए उभार को इस प्रकार उदर (छाती) की ओर लाने का प्रयास करें। गड़गड़ाहट की आवाज़ होगी।
(v) देखते-देखते सूजन यह क्रिया करने में दूर हो जायेगी। रोगी अपने कष्ट में सुधार अनुभव करने लगेगा। कुछ देर रोगी को इसी स्थिति में दवाये रखें।
(vi) रोगी की आयु, शारीरिक रचना एवं कमर के माप के अनुसार उचित आकार की ट्रस (पेटी) की व्यवस्था करें। हर्निया ट्रस लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि ट्रस की गाँठ वहीं पड़े जहाँ आँत के उतरने से उभार पैदा हुआ था।
(vii) कभी कभी ऐसा भी होता है कि उपरोक्त विधि का प्रयोग करने से भी उभार ज्यों का त्यों बना रहता है अर्थात् आँत आसानी से स्थान पर नहीं आती है। ऐसी स्थिति में तत्काल ही "एनीमा" करें।
(viii) यदि "एनीमा" से भी स्थिति में सुधार न हो तो रोगी को यथाशीघ्र अस्पताल भेज दें।
नोट :- ध्यान रहे कि अग्रिम चिकित्सा के लिये कभी भी रोगी को अग्रसारित करते समय, रोगी के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण लिखित रूप में ही दें। कुछ चिकित्सक यों ही रोगी को अस्पताल भेज देते हैं या कुछ दो चार बातें रोगी के अभिभावक को समझाकर रोगी के साथ भेज देते हैं। ये दोनों ही अनुचित विधि है। इसलिये कि बिना कुछ कहे भेज देने से रोगी के रोग के साथ-साथ अस्पताल चिकित्सक को इस उलझन का भी सामना करना पड़ता है कि औषधियाँ कौन-कौन सी प्रयुक्त हैं? यदि रोगी के अभिभावक को कुछ कहकर भेज दिया गया है भी तो यह इसलिये अनुचित है क्योंकि डॉक्टरी ज्ञान भी अभिभावकों को नहीं होता है वे सुनी बातें किसी और रूप में कह सकते हैं। यदि कुछ सोच समझ वाले होते भी हैं तो अपने रोगी के साथ सहृदय होने के कारण मानसिक रूप से विचलित हुए रहते हैं। अतः हमेशा लिखित विवरण के साथ ही रोगी को अग्रसारित करें।
हर्निया (Hernia)
एक विशिष्ट अध्ययन (Classfied Study of Hernia)
यद्यपि हर्निया के अनेक भेद हैं। लेकिन मुख्य रूप से इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है।
हर्निया
- अण्डकोष में उतरी आँत
- जाँघ में उतरी आँत
1. (i) पूर्ण हर्निया
(ii) अपूर्ण हर्निया
2. (i) जाँघ के ऊपर का हर्निया
(ii) जाँघ के ऊपर सटे भाग का हर्निया
अनेकानेक हर्निया की परिभाषायें (विवरण) :-
पूर्ण हर्निया (Complete Hernia)- इसमें ऑत वंक्षण नलिका (Inguinal Canal) के द्वारा वंक्षण छेद में होते हुए अण्डकोष में उतर आती है इसमें सूजन पेट के निचले भाग से । अण्डकोष की ओर बढ़ती हुई स्पष्ट प्रतीत होती है। रोगी को चित्त लिटा कर अण्डकोष को दबाने से गड़गड़ाहट की आवाज़ के साथ आँत ऊपर चढ़ जाती है।
अपूर्ण हर्निया (Incomplete Hernia) - इसमें आँत का भाग बाहरी वंक्षण छिद्र पर ही उतरकर रूक जाता है जिससे वहाँ एक गोला सदृश संरचना का उभार दीख पड़ता है। यह उभार खाँसने या छींकने के समय इधर-उधर स्थानान्तरित होते हुए जान पड़ता है। चूंकि यह पूर्ण हर्निया नहीं होता है अतः सुचिकित्सा एवं उपचार से ठीक होना संभव होता है। यदि इसी अवस्था में सफल चिकित्सा नहीं की जा सकी तो यही अपूर्ण हर्निया, पूर्ण हर्निया में बदल जाता है।जाँघ के ऊपर का हर्निया (Femoral Hernia) - यद्यपि यह हर्निया अधिकतर स्त्रियों को ही होता है लेकिन पुरुषों तथा स्थूलकाय वृद्धों में कभी-कभी देखने को मिलता है। विशेषकर उन स्थूलकाय वृद्धों में जो किसी लम्बी बीमारी के शिकार रहे चुके हों या पीड़ित हों। इस श्रेणी के हर्निया में जॉय की कक्षा में स्पष्ट उभार-सा दीख पड़ता है। दबाने से गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है। इसी आवाज़ के साथ आँत अस्थायी रूप से ऊपर जाकर पुनः अपने स्थान पर आ जाती है।
जाँघ के ऊपर सटे भाग का हर्निया (Slight Femoral Hernia) - जाँघ वाले स्थान में दबाने से अपूर्ण हर्निया स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है। इसमें आँत का पूर्ण भाग नीचे नहीं उतरता है बल्कि आंशिक भाग ही नीचे उतरता है। हर्निया के स्थान पर यहाँ भी कुछ उभार छूने से प्रतीत होता है।
वंक्षण गुहा में फँसा हुआ हर्निया (Strangulated Inguinal Hernia)- इस हर्निया में वंक्षणगुहा में ऑत उतरकर फँस जाती है। यह बड़ी कष्टदायक स्थिति पैदा करती है। इसमें तीव्र वेदना, ज्वर, बेचैनी एवं अजीर्ण जैसे लक्षण भी प्रकट होते हैं। यदि फंसी हुई आँत का भाग छोटा होता है तथा उसमें काला दाग पड़ जाता है तब वह धीरे-धीरे सड़ने लगता है। इस स्थिति में आक्रान्त स्थान पर बेचैन करने वाली पीड़ा एवं तनाव प्रतीत होता है। पूर्णतः सड़ जाने पर शरीर में गैंग्रीन के औपसर्गिक सभी लक्षण होते हैं।
खिसककर उतरने वाला हर्निया (Sliding Hernia) - कभी-कभी उदर क्षेत्र के दाहिनी ओर के नीचे की आन्त्रपुच्छ (Appendix) सीकम सहित और अधिक नीचे उतर आती है अर्थात् खिसक जाती है। इस खिसकने के कारण उत्पन्न हर्निया को खिसकने वाली हर्निया (Sliding Hernia) कहते हैं। इसके सामने उदर्याकला की दो स्तरें होती हैं। बाहर की ओर (रेट्रोपेरिटोनियल Retroperitoneal) भाग होता है। किन्तु जब थैली रहित बायीं ओर खिसकने वाली हर्निया होती है तो उसमें अधिकतर सिगमाइडकालोन (Sigmoid colon) का कोई भाग होता है। हर्निया के स्थान पर सूजन (उभार), दबाने से गड़गड़ाहट की आवाज़, दर्द और प्रदाह अनुभव होता है। ये कष्ट कभी-कभी उग्र रूप धारण कर लेते हैं।
अण्डग्रधि रहित जन्मजात हर्निया (Congenital Hernia with Undescended Testicle)-कई बार देखने को मिलता है कि पुरुष शिशु के अण्डकोष की थैली में अण्डग्रथि नहीं होती है। मात्र त्वचा की थैली प्रतीत होती है। इस थैली में अण्डग्रधि के स्थान पर ऊपर से कोई अन्य अंग लटकता है जो कि आँत का ही एक भाग होता है। इसे दबाने से गड़गड़ाहट की आवाज आती है। इसमें कभी दर्द तो कभी प्रदाह हो जाता है। चूंकि ऐसी शिकायत जन्मकुल से ही होता है। इसलिये इसे जन्मजात अण्डकोष में अण्डग्रधि नहीं होने से अण्डग्रंथि रहित हर्निया कहते हैं।
ऑपरेशन की सीवन टूटने का हर्निया (Incisional Hernia)-हर्निया चिकित्सा के निमित्त पूर्व में कभी ऑपरेशन किया गया हो। उस ऑपरेशन के टाँके टूटने से पुनः हर्निया पूर्व की स्थिति में आ जाये तो उसे ऑपरेशन की सीवन टूटने से उत्पन्न हर्निया कहते हैं। इसमें भी हर्निया के स्थान पर उभार, सीवन टूटने के चिह्न तथा प्रदाह आदि लक्षण होते हैं।
बड़ी आँत उतरने का हर्निया (Giant Hernia)- इस प्रकार का हर्निया अन्य सव प्रकार के हर्निया से बड़ा और विकृत होता है, इसीलिये इसे जायंट (Giant) अर्थात् दैत्याकार हर्निया कहते हैं। इसमें जाँघ के मध्य एवं घुटने तक भी लटकी हुई बड़ी आँत, डरावनी-सी होती है। इस प्रकार का हर्निया मानव सिर के आकार की भाँति वा कभी-कभी इससे भी बड़ा देखा गया है। जल्दी-जल्दी में ऐसे हर्निया का ऑपरेशन कर देना, जान से खिलवाड़ करना है। अतः समुचित उपचार का सहारा लेते हुए ही अनुकूल कदम उठाने चाहियें। इस प्रकार के हर्निया में आवश्यक उपचार से प्राण रक्षा करते हुए ही अनुकूल कदम उठाना चाहिये। इस हर्निया में पूर्णतः ट्रान्सवर्स कॉलोन (Transverse Colon) का ही अंश नीचे उतर आता है।
शल्योपरान्त की विशाल आमाशयिक हर्निया (Giant Postoperative Ventral Hernia)
"हर्निया की पूर्व ऑपरेशन" की सीवन टूटने से उत्पन्न हर्निया की चर्चा की जा चुकी है। यदि वह साधारण प्रकार का होता है तो उसे कमर बन्द (Abdominal Girdle or Supporter) के सहारे सम्हाला जा सकता है, लेकिन जब ऐसा न होकर बहुत बड़ा भाग विकृत उभार लिये हर्निया होता है तो मात्र कमरबन्द जैसे उपचार से चिकित्सा संभव नहीं होती अपितु दक्षतापूर्ण शल्य चिकित्सा अपेक्षित होती है। इस प्रकार के ऑपरेशन (अतिरिक्त या पुनर्शल्य चिकित्सा) से बचने के लिये शल्य चिकित्सक को चाहिये कि प्रथम ऑपरेशन के समय ही सावधनियाँ बरते। सीवन में मजबूती से गाँठ लगायें एवं यथाशीघ्र घाव ठीक होने की व्यवस्था करें। रोगी को निर्देश दें कि स्वस्थ हो जाने के कुछ दिन वा कुछ मास बाद तक भी वज़न न उठाये और ऐसा कोई भी काम न करे जिससे उदर की माँसपेशियों पर जोर पड़े- क्योंकि इन कारणों से भी सीवन टूट जाती है और इस प्रकार के हर्निया देखने को मिलते- हैं।
ऑब्यूरेटर और सुप्राप्युबिक हर्निया
(Obturator and Suprapulic Hernia)
वस्ति प्रदेश या निम्नोदर के ऊपर एवं जँघास्थि प्युबिक बोन (Pubis Bone) के नीचे बाहरी ऑब्यूरेटर पेशी से सटा ऑब्यूरेटर हर्निया हो जाता है। इसके निदान के लिये पैनी दृष्टि अपेक्षित होती है। क्योंकि उदर में आँत फँसने की शंका भी इस स्थिति में हो सकती है। वस्ति प्रदेश के ऊपर प्यूबिक बोन के ऊपरी किनारे पर सुप्राप्युबिक हर्निया का उभार दिखलाई पड़ता है। ऑन्यूरेटर आर्टरी, हर्निया के नीचे एकदम सटी होती है।
महाप्राचीरा पेशी के छिद्र से निकलने वाला हर्निया (Diaphragmatic Hernia)
वक्ष और उदर के बीच गुम्बज के आकार की मोटी पेशी होती है जिसे "महाप्राची पेशी" या "वक्षोदर मध्यस्त माँसपेशी" (Diaphragm) कहते हैं। कभी-कभी किसी व्यक्ि को इस माँसपेशी के छिद्र से होकर हर्निया हो जाता है। इसकी पूर्ण जाँच एक्स रे (X-Ray द्वारा की जा सकती है। लक्षण स्वरूप हर्निया के स्थान पर पीड़ा, जलन एवं प्रदाह होता है
पुनरावर्तित हर्निया
(Recurrent Hernia)
इसे पुनरावर्तित अर्थात् वार-वार होने वाला हर्निया भी कहते हैं।
जैसा कि पीछे प्राथमिक सामान्य उपचार में दर्शाया है कि आँत को अपने स्थान पर लाकर हर्निया के कष्ट से कैसे मुक्ति दिलायी जाये। आपातकाल में ऐसे उपचार के बाद हर्निया की पेटी (Hernia Truss) का प्रयोग करें। जब तक पेटी न ली जा सके, तब तक एक लम्बी धोती में गाँठ लगाकर, गाँठ को हर्निया के स्थान पर रखकर (ऑत को अपने स्थान पर लाने के बाद) धोती को पेट पर या कमर पर (जैसी हर्निया हो) लपेट दें। इसका प्रयोग बरावर करना आवश्यक है। ऐसा नहीं करने से भी ऑत बार-बार नीचे उतरकर पुनरावर्तित हर्निया के रूप में स्पष्ट हो जाती है।
कभी-कभी ऑपरेशन के बाद भी हर्निया हो जाता है जिसमें कभी शल्य चिकित्सक की भूल हो जाती है तो कभी रोगी की असंयमित जीवन जीने की भूल हो जाती है। बार-बार होने वाले हर्निया के कारण इस प्रकार हैं-
• उदरच्छदा चरमा माँस प्रावरणी (Transvesalis Tiascia) की समुचित ढंग से सिलाई न हो पाना।
• शल्य चिकित्सा के वाद समुचित औषधियों का प्रयोग न हो पाने से घाव का गहरा होना।
• खाँसी, कंचनयुक्त दस्त आना-इनमें से कोई भी कष्ट हर्निया के ऑपरेशन के वाद हो जाये तो हर्निया के पुनरावर्तन का भय होता है।
• स्थूल शरीर (अधिक चर्चीयुक्त) वाले रोगी में हर्निया रोग के पुनरावर्तन का भय रहता है।
• प्रारम्म में ही सीवन के टॉकों में संक्रमण से मवाद बन जाना।
• टाँकें लगाते समय कैटगट छोटा काट देना। इससे कैटगट के फूलने से गाँठें खुल जाती हैं और वहुत जल्दी ही, यहाँ तक कि एक-दो सप्ताह के अन्दर ही पुनः हर्निया हो जाता है।
• पौरुष ग्रंथि (Prostate gland) के वढ़ने से मूत्रावरोध की शिकायत होना।
• आँत या उदर की माँसपेशियों पर जोर पड़ने वाला कोई काम करना आदि।
अधिजठर प्रदेश सम्बन्धी हर्निया
(Epigastric Hernia)
अमाशय के ऊपर या नीचे होने वाले हर्निया को एपिगैस्ट्रिक हर्निया कहते हैं। हर्निया के स्थान पर प्रदाह एवं दर्द हाता है।
वक्र वंक्षण आन्त्रावतरण (हर्निया)
(Indirect Inguinal Hernia)
इसमें वंक्षण प्रदेश होकर टेढ़े रूप में आँत नीचे उतर आती है जो उभारयुक्त एवं विना दर्द के होती है। इसका स्थान इन्वीनल लिगामेंट के समानान्तर थोड़ा नीचे होता है।
सीधा वंक्षण आन्त्रावतरण (हर्निया)
(Direct Inguinal Hernia)
इस प्रकार के हर्निया विशेषकर स्थूल शरीर (चर्वोयुक्त शरीर) वालों या वृद्धों को होता है। लेकिन ऐसी बात नहीं है कि प्रौढ़ों को हो ही नहीं सकता। प्रौढ़ भी इसके शिकार हो सकते हैं लेकिन वृद्धों एवं चर्वोयुक्त व्यक्तियों की अपेक्षा कम। इसमें ऑत सीधी वंक्षण होकर नीचे उतरती है। ऑत जहाँ उतर कर आई होती है, अवस्थित होती है, वहाँ स्पष्ट उभार दीखता है। इस उभार को दवाने से आँत में गड़गड़ाहट की आवाज आती है। इसी आवाज़ के साथ आँत ऊपर चली जाती है। इस समय थोड़ा दर्द भी होता है। प्रमुख हर्निया के कुछ चित्र नीचे दिये जा रहे हैं जो मूलतः "फण्डामेण्टल्स ऑफ जनरल सर्जरी" डॉ. जे. ए. गिवस लिखित तृतीय संस्करण से साभार लिये गये हैं।
A. भ्रूणावस्था में अण्डग्रधि पेरीटोनियम स्तर के पिछले भाग से लगा हुआ है। (A. The Testicle is in the retroperitoneal Position during early embryonic life.)
B. जलीय आवरण एवं गुवनीकुलम अण्डग्रथि का क्रमवार प्रदर्शन। (B. The Processes vaginalis and the gubernaculum testis appear.)
C. अण्डग्रंथि खिसक कर अण्डकोष की थैली में आ गया है। (C. The testis has moved into the scrotal Pouch.)
D. अण्डग्रंथि के जलीय आवरण क्रम का ऊपर वाला भाग लुप्त होता हुआ दिखलाया गया है। (D. The upper or funicular portion of the Processes vaginalis has become obliterated.)A. सामान्य रचनात्म सम्बन्ध संकीर्ण (लुप्तप्राय) फ्युनिकुलर प्रोसेस (शुक्ररज्जु) एवं अण्डग्रंथि का जलीय आवरण स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।(A. Normal anatomic retationships. Note the obliterated funicular Process and tunica vaginalis testis.)
B. अपूर्ण वक्र वंक्षण आन्त्रावतरण (B. Incomplete indirect inguinal hernia.)C. पूर्ण वक्र वंक्षण आन्त्रावतरण आवश्यक झिल्लीनुमा थैली का पूर्णतः खुला होना दर्शाया गया है।